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डिजिटल अरेस्ट का नया मामला: 80 साल की महिला को नकली सुप्रीम कोर्ट दिखाकर 30 लाख रुपये की ठगी


भारत में साइबर क्राइम की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। तकनीक के इस युग में जहां एक तरफ इंटरनेट लोगों के जीवन को आसान बना रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसी तकनीक का दुरुपयोग कर अपराधी मासूम लोगों को अपने जाल में फंसा रहे हैं। ऐसा ही एक ताजा मामला मुंबई से सामने आया है, जहां एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला को ‘डिजिटल अरेस्ट’ का शिकार बनाकर 30 लाख रुपये की भारी चपत लगाई गई। इस धोखाधड़ी में महिला को नकली सुप्रीम कोर्ट, नकली पुलिस अधिकारी, और फर्जी जज तक दिखाए गए। मामले को इतना असली बनाया गया कि महिला को ‘सुनवाई’ के लिए सफेद साड़ी पहनने तक को कहा गया।

क्या है डिजिटल अरेस्ट?

डिजिटल अरेस्ट एक नई तरह की साइबर ठगी है जिसमें अपराधी कॉल या वीडियो कॉल के माध्यम से पीड़ित को यह यकीन दिलाते हैं कि वे किसी गंभीर अपराध में शामिल हैं, और उनकी गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है। इसके बाद उन्हें ‘डिजिटल तौर पर अरेस्ट’ किया जाता है, यानी घर से बाहर न निकलने की चेतावनी दी जाती है और हर गतिविधि पर नजर रखने की बात कही जाती है। इस डर का फायदा उठाकर ठग पीड़ित से मोटी रकम वसूल लेते हैं।

पूरा मामला: कैसे बुजुर्ग महिला को बनाया गया निशाना

यह घटना मुंबई के पूर्वी उपनगर की है। 80 वर्षीय महिला को 15 जनवरी को एक फोन कॉल आया, जिसमें खुद को टेलीकॉम अथॉरिटी का अधिकारी बताया गया। कॉलर ने कहा कि उनका मोबाइल नंबर अवैध गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा है और उनके खिलाफ कोलाबा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई है।

महिला को बताया गया कि यह मामला बहुत गंभीर है और इसमें उनका नाम मनी लॉन्ड्रिंग में आ रहा है। यही नहीं, उनसे पूछा गया कि 3 अक्टूबर 2024 को उन्होंने कहां और क्या किया था। चूंकि महिला को कुछ याद नहीं था, ठगों ने कहा कि उनका नाम आपराधिक गतिविधियों में शामिल है और उनके संपर्क अरविंद केजरीवाल और एक अन्य व्यक्ति गोयल से हैं।

डराने की रणनीति: सुप्रीम कोर्ट की नकली सुनवाई

महिला को डराने के लिए उन्हें यह कहा गया कि उनका केस अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। नकली कॉलर ने उन्हें यह भी चेताया कि यदि उन्होंने इस बारे में किसी को बताया तो उनके बेटे को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए जाएंगे।

महिला को यकीन दिलाया गया कि सुप्रीम कोर्ट की ‘ऑनलाइन सुनवाई’ होगी और उसके लिए उन्हें सफेद साड़ी पहननी होगी, ताकि कोर्ट में पेश होने की गंभीरता बनी रहे।

कुछ दिन बाद महिला के साथ वीडियो कॉल के जरिए एक ‘फर्जी सुनवाई’ की गई, जिसमें नकली कोर्टरूम, नकली जज और नकली पुलिस अधिकारी थे। उन्हें यह बताया गया कि उन्हें जमानत के लिए 30 लाख रुपये जमा कराने होंगे, और यह रकम तुरंत ट्रांसफर करनी होगी।

नकली दस्तावेज और फर्जी हस्ताक्षर

इस ऑनलाइन सुनवाई में महिला को सीबीआई डायरेक्टर के नाम से एक फर्जी दस्तावेज दिखाया गया जिसमें उनकी गिरफ्तारी को रोकने के लिए 30 लाख रुपये की जमानत राशि की बात लिखी थी। यह दस्तावेज डिजिटल रूप से महिला के व्हाट्सएप पर भेजा गया।

महिला से कहा गया कि वह जल्द से जल्द पैसे ट्रांसफर कर दें और इस बारे में किसी से चर्चा न करें, खासतौर पर अपने बेटे से नहीं। डर और भ्रम में महिला ने 24 जनवरी को धोखेबाजों को 30 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए।

बेटे की सतर्कता से हुआ खुलासा

कुछ दिन बाद जब महिला को दोबारा ‘ऑनलाइन सुनवाई’ के लिए बुलाया गया, तो उन्होंने अपने बेटे को इस बारे में जानकारी दी। बेटे ने तुरंत मामले की गंभीरता को समझते हुए कॉल काट दिया और साइबर क्राइम हेल्पलाइन में इसकी शिकायत दर्ज कराई।

29 मार्च को पुलिस ने इस मामले में औपचारिक शिकायत दर्ज की और जांच शुरू कर दी है।


साइबर अपराधी कैसे बना रहे मासूमों को शिकार?

  1. धोखे की कॉल: अपराधी खुद को पुलिस, सीबीआई, या टेलीकॉम अथॉरिटी का अधिकारी बताकर कॉल करते हैं।
  2. आरोप और धमकी: पीड़ित को डराया जाता है कि उनके खिलाफ गंभीर शिकायत दर्ज है।
  3. डिजिटल कोर्ट: नकली ऑनलाइन सुनवाई आयोजित की जाती है, जिसमें कोर्ट का माहौल बनाया जाता है।
  4. सफेद कपड़ों की शर्त: पीड़ित को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है ताकि मामला वास्तविक लगे।
  5. रकम की मांग: अंत में, जमानत के नाम पर लाखों रुपये की ठगी की जाती है।

कौन हो रहे हैं टारगेट?

इस तरह के मामलों में ज़्यादातर बुजुर्गों को टारगेट किया जा रहा है। इसकी वजह यह है कि बुजुर्ग आमतौर पर तकनीक के मामलों में बहुत ज्यादा अपडेट नहीं होते और डर या भ्रम में जल्दी आ जाते हैं। यही वजह है कि साइबर अपराधी उन्हें आसानी से अपनी बातों में फंसा लेते हैं।


सरकार और एजेंसियों की चेतावनी

सरकार, पुलिस विभाग, और साइबर क्राइम सेल लगातार नागरिकों को जागरूक कर रहे हैं। लेकिन अपराधी नए-नए तरीके अपनाकर लोगों को झांसे में ले रहे हैं।

भारत सरकार की साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर तुरंत कॉल करके कोई भी नागरिक ऐसी धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके अलावा www.cybercrime.gov.in पर जाकर भी रिपोर्ट की जा सकती है।


ऐसे बचें डिजिटल अरेस्ट जैसे फ्रॉड से

  1. अपरिचित नंबर से आई कॉल पर सतर्क रहें।
  2. कभी भी किसी को अपनी पर्सनल जानकारी, OTP या बैंक डिटेल न दें।
  3. कोई भी सरकारी एजेंसी व्हाट्सएप पर कॉल या मैसेज नहीं करती।
  4. कोर्ट की कोई सुनवाई ऑनलाइन व्हाट्सएप पर नहीं होती।
  5. धोखेबाजों की भाषा में जल्दबाजी और डर होता है—इससे सतर्क हो जाएं।
  6. संदेह होने पर तुरंत अपने परिवार वालों से बात करें और पुलिस को सूचित करें।

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निष्कर्ष

डिजिटल अरेस्ट एक खतरनाक साइबर क्राइम है जो तकनीक और मानसिक भ्रम का इस्तेमाल करके लोगों को ठगता है। 80 वर्षीय महिला के साथ हुई यह घटना न सिर्फ दुखद है, बल्कि यह भी बताती है कि अपराधी किस हद तक जाकर लोगों को ठग सकते हैं। इस मामले से सीख लेकर हमें खुद को और अपने परिवार को जागरूक करना चाहिए।

अगर आपको भी इस तरह की कोई कॉल, मैसेज या वीडियो कॉल आए, तो डरें नहीं, सतर्क रहें। यह समझें कि कोई भी आधिकारिक एजेंसी इस तरह काम नहीं करती।

इस लेख को अधिक से अधिक लोगों के साथ साझा करें ताकि कोई और मासूम व्यक्ति ऐसे साइबर अपराधियों का शिकार न बने।


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