
पिरामिड दुनिया के महासागर अपनी गहराई में न जाने कितने रहस्य समेटे हुए हैं। इन्हीं में से एक रहस्य 1986 में जापान के रयूक्यू द्वीप समूह के पास समंदर के नीचे मिला था। यह कोई आम खोज नहीं थी, बल्कि एक ऐसी संरचना सामने आई, जिसने वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को चौंका दिया। समुद्र की सतह से 82 फीट नीचे स्थित यह 90 फीट ऊंचा रहस्यमयी पिरामिड अब तक के ज्ञात इतिहास को चुनौती दे रहा है।
यह संरचना जिसे अब Yonaguni Monument के नाम से जाना जाता है, सिर्फ एक विशाल चट्टान नहीं, बल्कि इंसानी सभ्यता के प्राचीनतम रहस्यों में से एक मानी जा रही है।
योनागुनी स्मारक की खोज कैसे हुई?
सन् 1986 में जापानी गोताखोर किहाचिरो अराताके मछलियों की तलाश में गोता लगा रहे थे, तभी उन्हें समुद्र की गहराई में कुछ असामान्य पत्थरों की संरचना दिखाई दी। जब वह पास गए तो उन्होंने पाया कि यह कोई सामान्य चट्टान नहीं, बल्कि एक सममित और वास्तुशिल्पीय दृष्टिकोण से गढ़ी गई संरचना है। उन्होंने तुरंत विशेषज्ञों को इसकी जानकारी दी।
इसके बाद कई वर्षों तक जापान के भूवैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों ने इस पर शोध किया, जिनमें सबसे प्रमुख नाम प्रोफेसर मसाकी किमुरा का है, जो ओकिनावा विश्वविद्यालय में समुद्र विज्ञान पढ़ाते हैं।
योनागुनी स्मारक की सबसे आश्चर्यजनक बात इसकी संरचना है:
- यह करीब 500 फीट लंबा, 130 फीट चौड़ा, और 90 फीट ऊंचा है।
- इसमें नुकीले किनारों वाली सीढ़ियां, चौकोर मंच, और संकीर्ण मार्ग हैं।
- संरचना इतनी व्यवस्थित है कि इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी वास्तुकार ने इसे डिजाइन किया हो।
प्रोफेसर मसाकी किमुरा और उनके सहयोगियों का दावा है कि यह मानव निर्मित है। उन्होंने यहां तक कहा कि इसमें मंदिर, सड़कें, और यहां तक कि मूर्तियों के अवशेष भी हो सकते हैं।
10,000 साल पुरानी संरचना?
इस स्मारक को लेकर सबसे हैरान करने वाला पहलू इसका अनुमानित समय है।
जिन पत्थरों का अध्ययन किया गया, उनके अनुसार यह संरचना 10,000 साल से भी अधिक पुरानी हो सकती है। इसका मतलब है कि यह संरचना कृषि युग (Agricultural Age) से भी पहले की हो सकती है।
इतिहासकारों का मानना है कि मानव सभ्यता ने विशाल इमारतों का निर्माण लगभग 12,000 साल पहले कृषि के उदय के बाद ही शुरू किया था। लेकिन योनागुनी स्मारक इस धारणा को चुनौती देता है।
अगर यह वास्तव में मानव निर्मित है, तो यह मिस्र के पिरामिडों (2600 ईसा पूर्व) और स्टोनहेंज (3000 ईसा पूर्व) से भी हजारों साल पुराना है।
क्या यह प्राचीन खोई हुई सभ्यता का संकेत है?
योनागुनी स्मारक को देखकर कई इतिहासकार और लेखक इसे “जापान का अटलांटिस” कहने लगे हैं। अटलांटिस एक प्राचीन खोई हुई सभ्यता है, जिसका वर्णन प्लेटो ने किया था, जो समुद्र में डूब गई थी।
इस संरचना की विशालता और जटिलता यह संकेत देती है कि संभव है, यह किसी भूले-बिसरे सभ्य समाज का हिस्सा रही हो, जो हजारों साल पहले समुद्र में समा गया हो।
लेखक ग्राहम हैंकॉक, जो खोई हुई सभ्यताओं पर अपने विवादास्पद विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं, ने योनागुनी स्मारक को साक्ष्य मानते हुए कहा कि “हमें प्राचीन इतिहास को फिर से लिखने की जरूरत है”।
क्या यह प्राकृतिक संरचना है?
हालांकि, इस पिरामिड की मानव निर्मित होने की धारणा को सभी वैज्ञानिक नहीं मानते। कुछ भूवैज्ञानिक और पुरातत्वविद्, जैसे कि रॉबर्ट स्कोच, का मानना है कि यह संरचना प्राकृतिक है और समुद्र की लहरों और चट्टानों के क्षरण से बनी है।
उनका तर्क है:
- जापान के आसपास की चट्टानें चूना पत्थर की हैं जो जल्दी टूटती हैं।
- प्राकृतिक प्रक्रियाओं के चलते सीधी रेखाएं और कोण बनने संभव हैं।
- इस संरचना पर कोई नक्काशी, औजारों के निशान या इंसानी कला के प्रमाण नहीं मिले हैं।
जो रोगन शो में बहस
इस रहस्य ने तब और सुर्खियां बटोरीं जब Joe Rogan Experience पॉडकास्ट में लेखक ग्राहम हैंकॉक और पुरातत्वविद् फ्लिंट डिबल के बीच योनागुनी पिरामिड को लेकर तीखी बहस हुई। हैंकॉक जहां इसे खोई हुई सभ्यता का प्रमाण मानते हैं, वहीं डिबल इसे प्रकृति की रचना मानते हैं।
इस चर्चा ने सोशल मीडिया और यूट्यूब पर नई बहस को जन्म दिया कि आखिर इस रहस्यमयी संरचना की सच्चाई क्या है?
क्या कहता है विज्ञान?
विज्ञान समुदाय दो हिस्सों में बंटा हुआ है:
- प्रो. किमुरा और ग्राहक हैंकॉक जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी समरूपता और सीढ़ियों जैसी बनावट इंसानी दखल की ओर इशारा करती है।
- यह भी संभव है कि समुद्र तल में वृद्धि के कारण यह जलमग्न हुआ हो।
2. प्राकृतिक संरचना समर्थक
- भूवैज्ञानिक मानते हैं कि यह एक ज्वालामुखीय चट्टानों की भूगर्भीय परतों से बनी संरचना है।
- पानी, हवा और भूकंप के चलते बनी गहरी लकीरें और प्लेटफॉर्म जैसी संरचना एक भ्रम पैदा करती हैं।
क्या फिर से लिखना पड़ेगा इतिहास?
अगर यह सिद्ध हो जाता है कि योनागुनी संरचना मानव निर्मित है, तो इससे इतिहास की सबसे बड़ी किताब फिर से लिखनी पड़ेगी। इसका मतलब यह होगा कि:
- इंसान कृषि से पहले भी विशाल संरचनाएं बना सकता था।
- हमारी सभ्यता की शुरुआत कई हजार साल पहले हुई थी, जितना अब तक सोचा गया है।
- इतिहास के कई तथ्यों को दोबारा जांचने की आवश्यकता है।
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निष्कर्ष
योनागुनी पिरामिड आज भी एक रहस्य बना हुआ है। क्या यह मानव निर्मित प्राचीन सभ्यता का हिस्सा है या फिर प्रकृति का अद्भुत खेल? इसका जवाब भविष्य के शोधों में छिपा है। लेकिन एक बात तय है — इसने इतिहास, भूविज्ञान और पुरातत्व की दुनिया में एक नई जिज्ञासा को जन्म दिया है।
समंदर की गहराइयों में छिपे इस रहस्य को समझने के लिए तकनीकी विकास, ओपन माइंडेड वैज्ञानिक सोच और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।